Public Opinion: शिक्षा माफिया हावी… निजी स्कूलों की इस मनमानी पर फूटा अभिभावकों का गुस्सा! जानें क्या बताया?

गोड्डा. झारखंड में निजी स्कूलों की मनमानी अब विधानसभा तक पहुंच चुकी है. नए साल के साथ नया शैक्षणिक सत्र भी शुरू हो चुका है, और बच्चों के एडमिशन की प्रक्रिया जारी है. निजी स्कूलों में ट्यूशन फीस के अलावा, री-एडमिशन फीस और अन्य गतिविधियों की फीस भी जोड़ी जाती है, जिससे अभिभावकों को हर साल मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है.

सबसे अधिक परेशानी तब होती है जब हर साल स्कूल सिलेबस बदल दिया जाता है. निजी स्कूल इस हद तक मनमानी करते हैं कि महंगी किताबें एक निश्चित दुकान से ही खरीदनी पड़ती हैं. इससे अभिभावकों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ जाता है.

हर वर्ग के लोग निजी स्कूलों में पढ़ाना चाहते हैं
गोड्डा के आलोक कुमार भगत ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि आज के दौर में रिक्शा चालक से लेकर मध्यमवर्गीय परिवार और बड़े व्यापारी तक, हर किसी की इच्छा होती है कि उनके बच्चे अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूलों में पढ़ें. लेकिन नए सत्र में भारी खर्च को देखते हुए कई अभिभावकों का मनोबल टूट जाता है.

स्कूलों में अवैध शुल्क का आरोप
महागामा के आशीष कुमार ने बताया कि उनके बच्चे भी निजी स्कूल में पढ़ते हैं, लेकिन स्कूल प्रबंधन पढ़ाई के अलावा कई अनावश्यक शुल्क वसूलता है, जो पूरी तरह अवैध है. अगर यह मामला विधानसभा में उठ चुका है, तो सरकार को इस पर उचित नियम बनाने चाहिए.

हर साल सिलेबस बदलने से बढ़ती मुश्किलें
शिवतोष और अजित राजन ने बताया कि जिले के सभी निजी स्कूल हर साल सिलेबस बदल देते हैं. इससे एक साल पढ़ी हुई किताबें अगले साल बेकार हो जाती हैं. किताबों की कीमत भी बेहद अधिक होती है और इन्हें केवल एक निश्चित दुकान से ही खरीदा जा सकता है. अन्य दुकानों पर ये किताबें नहीं मिलतीं. इससे साफ समझा जा सकता है कि झारखंड में निजी स्कूलों का सिस्टम किस तरह से काम कर रहा है.

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